सिस्टम की मार झेल रहे ग्रामीण, नदी में पूल नहीं, बारिश में टापू बनते है गांव, मजबूरी में संकट में डालनी पड़ती है जान, देखिए खास रिपोर्ट

कांकेर। केंद्र और राज्य की सरकार दावा कर रही है कि बस्तर में विकास कार्य तेजी से किया जा रहा है, ताकि क्षेत्र के ग्रामीणों में सरकार के प्रति भरोसा जागे और नक्सलवाद का खात्मा कर बस्तर के अंदरूनी इलाकों के ग्रामीणों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। बारिश का मौसम आते ही सरकार के सारे दावे फेल हो जाते है और अंदरूनी इलाकों के लोग फिर से खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगते है,जिला मुख्यालय कांकेर से करीब 45 किलोमीटर दूर गांव  बांसकुंड के आश्रित गांव  ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचुर बारिश में टापू के तब्दील हो जाते है, इन गांव के ग्रामीण सालों से एक पूल के इंतजार में बैठे है , उन्हें लगता है कि शायद इस बारिश के पहले पूल बन जाए ,शायद सत्ता में बैठे नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान उनकी तरफ जाए लेकिन ऐसा होता नहीं है।  

स्टॉप डेम के पिल्हर कूदकर पार करते ग्रामीण

चिनार नदी के दूसरे छोर में बसे ये गांव शासन ,प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है, मुख्यालय से महज 45 किलोमीटर दूर होने के बाद भी आज यदि ये गांव बारिश में टापू बन जाते है तो सोचिए अंदरूनी नक्सल प्रभावित इलाकों का हाल क्या होगा, सोचिए यदि इन गांव में किसी की तबियत ज्यादा बिगड़ जाए तो उन्हें अस्पताल कैसे पहुंचाया जाएगा, आजादी के 76 साल बाद भी हालात ये है तो कैसे मान लिया जाए कि विकास अंदरूनी इलाकों तक पहुंच रहा है, शहरी इलाकों में बड़े बड़े ब्रिज और टनल बनाकर सरकार विकास का दावा करती है लेकिन जरूरत जिन इलाकों मे है, वहां से विकास कोसो दूर नजर आता है। बांसकुंड गांव के तीन आश्रित  गांव ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचूर के 500 ग्रामीण बरसात के 3 महीने जिला मुख्यालय, ब्लाक मुख्यालय, और ग्राम पंचायत से कट जाते है. चिनार नदी में बना एक स्टॉप डेम से ग्रामीण आवागमन करते है. कई ग्रामीणों का खेती किसानी नदी के इस पार-उस पार है. मजबूरन ग्रामीणों को स्टॉप डेम के पिलरो को कूद कर रोजना आना-जाना पड़ता है.

ग्रामीण बताते है कि चिनार नदी में  पूल की मांग बरसो पुरानी है, जवान बुजुर्ग हो गए और बच्चे जवान हो गए लेकिन पूल अब तक एक सपना ही रह गया है। 

काफी जद्दोजहद के बाद  हाटकर्रा गांव से ऊपर तोनका 4 किमी सड़क तो बनी , लेकिन पूल बनाना शायद जरूरी नहीं समझा।नदी में जब पानी का बहाव बढ़ जाता है तो ग्रामीणों को स्टॉप डेम के 16 पिलहर को जंपिंग चैंपियन की तरह लांघना पड़ता है, एक चूक और ग्रामीणों की जान संकट में आ सकती है लेकिन मजबूरी ग्रामीणों को जान खतरे में डालने मजबूर कर रही है , यही नहीं हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे भी इसी तरह स्कूल जाते है, नदी में पानी ज्यादा  हो तो प्राथमिक शाला के शिक्षक स्कूल नहीं पहुंच पाते है, कुल मिलाकर ये कहा जाए तो इन गांव के ग्रामीणों की जिंदगी बारिश में किसी सजा से कम नहीं है। 

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