सिस्टम की मार झेल रहे ग्रामीण, नदी में पूल नहीं, बारिश में टापू बनते है गांव, मजबूरी में संकट में डालनी पड़ती है जान, देखिए खास रिपोर्ट
कांकेर। केंद्र और राज्य की सरकार दावा कर रही है कि बस्तर में विकास कार्य तेजी से किया जा रहा है, ताकि क्षेत्र के ग्रामीणों में सरकार के प्रति भरोसा जागे और नक्सलवाद का खात्मा कर बस्तर के अंदरूनी इलाकों के ग्रामीणों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। बारिश का मौसम आते ही सरकार के सारे दावे फेल हो जाते है और अंदरूनी इलाकों के लोग फिर से खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगते है,जिला मुख्यालय कांकेर से करीब 45 किलोमीटर दूर गांव बांसकुंड के आश्रित गांव ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचुर बारिश में टापू के तब्दील हो जाते है, इन गांव के ग्रामीण सालों से एक पूल के इंतजार में बैठे है , उन्हें लगता है कि शायद इस बारिश के पहले पूल बन जाए ,शायद सत्ता में बैठे नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान उनकी तरफ जाए लेकिन ऐसा होता नहीं है। स्टॉप डेम के पिल्हर कूदकर...