बंदूक की लड़ाई में मात खाए नक्सलियों ने आईईडी को बनाया ढाल..बीजापुर में आठ माह में 12 जवान और 08 सिविलियन की गई जान

बीजापुर। बस्तर में चार दशक से काबिज माओवाद संगठन की जड़े बंदूक के बूते नहीं टिक रही है तो माओविदियों ने प्रेशर आईईडी को ढाल बना लिया है। माओवादियों के इस नए पैंतरे से सुरक्षा बल के जवानों के साथ साथ आम नागरिक और बेजुवान को भी नुकसान पहुंच रहा है।माओवादि पारंपारिक गोला-बारूद का इस्तेमाल इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस में मुख्य सामग्री के रूप में कर रह हैं।अपने आधार इलाकों में माओवादियों का फैलाया यह जाल अब आम नागरिकों की जान भी ले रहा हैं।

बीजापुर जिले में इसी वर्ष आईईडी विस्फोट की घटनाओं में ना सिर्फ जवानों की शहादत हुई हैं बल्कि आम नागरिक भी मारे गए हैं।प्राप्त जानकारी के अनुसार इसी वर्ष बीजापुर जिले के अलग-अलग थाना क्षेत्रों में माओवादियों द्वारा लगाए आईईडी की चपेट में आकर आठ सिविलियन की मौत हो गई, जबकि दो घायल हुए।तो इसी तरह 39 जवान घायल और 12 जवान वीरगति को प्राप्त हुए।

इस पर एएसपी नक्सल ऑपरेशन रविद्र कुमार मीणा का कहना है कि हाल में प्रेशर आईईडी की काफी घटनाएं सामने आई हैं।

 चूंकि नक्सली इतने सक्षम नहीं है कि वे आमने-सामने की लड़ाई लड़ सके। इसलिए आईईडी लगाने जैसी कायराना हरकतें वे कर रहे हैं, जिसमें सिविलियनों को भी नुकसान हो रहा है।हालांकि नक्सलियों की इन हरकतों को ध्यान में रखकर आगे सुरक्षा बल भी आईईडी ग्रस्त इलाकों की मैपिंग कर सेनेटाइज्ड कर सुरक्षित आगे बढ़ती रहेगी।

अलग अलग तरीके से आईईडी का इस्तेमाल

बस्तर में बीते चार दशक में आईईडी के मामले में नक्सलियों ने तकनीक को काफी बारिकी से समझा है। ब्लास्ट करने के लिए माओवादी कई तरीके अपनाते हैं। वे रिमोट कंटोल, इंफ्रारेड या मैग्नेटिक टिगर्स का इस्तेमाल करते हैं। प्रेशर- सेंसिटिव बार्स या टिप वायर का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार माओवादी सड़क किनारे तार की मदद से आईईडी को बिछाते हैं। बता दें कि बीजापुर में इसी साल माओवादियों की तरफ से की गई बारूदी विस्फोट में 9 जवान शहीद हो गए थे।

दो फीट से नीचे की आईईडी ढूंढने में दिक्कत

दरअसल नक्सलियों द्वारा प्लांट बम या आईईडी को दो फीट से ज्यादा गहराई में लगाई हो तो जवानों के पास कोई उपकरण नहीं कि उसका पता लगाया जा सके।

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